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राहुल ने बुंदेलखंड की जनता को भीख का कटोरा थमाया तो मायावती ने एक दो नही बल्कि तीन और प्रदेशों का झुनझुना थमा दिया। मायावती का नया पैतरा यह है कि एक बार फिर प्रदेश को भय, भूख, भ्रटाचार से निकालकर आश्वासनों के अंधकार में धकेल दिया जाये जिसमें प्रदेश की तीन चौथाई जनता यह भूल जाये कि वास्तविक मुद़दे कौन से हैं, यह है प्रदेश और देश की राजनीति के दो चेहरों की लडाई के पैंतरे। बडी बात यह है कि एक खानदानी राजनीतिज्ञ है तो दूसरी उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जिसके पास अब सब कुछ है। एक को प्रदेश में बार फिर अपनी विरासत को खडा करना है तो दूसरी के मन में इस बात को लेकर तीव्र छटपटाहट है कि कहीं बना बनाया सारा राजपाट हाथ से निकल न जाये। खैर माया और राहुल के इस नये चुनावी रंग में रंगे खेल पर बाजी किसके हाथ रहेगी इसका निर्णय दोनो के इरादे पूरी तरह से जानकर जनता ही करेगी जिसके लिये अभी कुछ समय की देर है। लेकिन इन शब्दों के निहितार्थ यहां से एक बडे युद्व के संकेत के रुप में है।
थोडा पीछे चलकर देखें तो पिछले चुनावों के पहले जब सूबे में मुलायम सिंह यादव का शासन था और महानायक का डायलाग कि उत्तर नही यह उत्तम प्रदेश है क्योंकि जुर्म यहां पर है कम का गुणगान सुनाई देता था पर मायाराज के आते ही माया ने अपने किये पहले वादे भय को चरितार्थ किया । कभी मुलायम राज में पोषित होने वाले ददुवा, निर्भय गुर्जर और अन्य ठोकिया समेत तमाम डकैतों को मौत की नींद सुलाने का काम किया पर भूख को कम करने की जगह आपसी वेमस्यता की पराकाष्ठा और भ्रष्टाचार की चरमता के दर्शन तो अभी तक आधा दर्जन से ज्यादा मंत्रियों के उपर लोकायुक्त की जांच का मुद़दा ही इशारा है। रही बात केंद्र सरकार की प्रमुख घटक कांग्रेस की तो उसके भी दामन पर ऐसे ऐसे दाग हैं कि जो सदियों तक धुलाये नही धुल सकते। घोटालों की सभी सीमायें लांध चुके कई मंत्री तिहाड में बंद अपनी हनक दिखा रहे हैं। अब युवराज क्या इसी तरह के नेताओं की दम पर प्रदेश में बीस साल बाद अपनी सरकार बनाने की बात कर रहे हैं। वैसे गंभीर बात तो यह भी है कि गांधी परिवार का प्रमुख किला रायबरेली और अमेठी भी इस बार कम ही सुरक्षित दिखाई देता है। सदर सीट पर विधायक अखिलेश सिंह के सामने उतारने के लिये पार्टी के पास प्रत्याशी नही है तो एक बार फिर पार्टी ने पुराने चेहरों पर भरोसा कर उन्हें समय में उतार दिया है पर मजे की बात यह है कि वे सभी चेहरे यह सोचकर अपने आप खुश हो रहे हैं कि गांधी परिवार का ग्लैमर उनके साथ है तो जनता एक बार फिर उन्हीं को चुन लेगी। वैसे इस बार तो यह उनका दिवास्वप्न ही नजर आता है।
बुंदेलखंड, अवध प्रदेश, पूर्वाचल और पश्चिम प्रदेश या हरित प्रदेश में उत्तर प्रदेश को विभाजित कर इस नये ब्रह़मास्त्र बताये जाने वाले टंप कार्ड को खेलकर केंद सरकार के पासें में अपनी चाल चलकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद दिया कि आपने बांदा की जनसभा में बुंदेलखंड का प्रस्ताव मांगा था पर अब आप तीन प्रस्ताव और लीजिये।
वैसे बात अगर बुंदेलखंड की करें तो राज्य बनना संभव दिखाई नही देता क्योंकि फडिक्कर की रिपोर्ट भाषाई आधार पर प्रदेश बनाये जाने की हिमायत करती हे लेकिन प्रस्तावित किये गये झांसी और चित्रकूट मंडलों के महोबा, जालौन, ललितपुर, झांसी जिलों में ही बुंदेली का प्रभाव है। बांदा में थोडा प्रभाव कमिश्नरी बनने के बाद आया है पर चित्रकूट में बुंदेली का कोई प्रभाव ही है। चित्रकूट तो राम की कर्मभूमि है यहां की भाषा बुंदेली नही बल्कि गहोरी है। वैसे यहां पर भी चौरासी कोस के परिपथ के आधार को लेकर अलग चित्रकूट प्रांत को बनाये जाने की मांग संतों के साथ ही क्षेत्र के नागरिक पहले ही कर चुके हैं। वैसे दो प्रदेशों की सीमाओं में फंसा चित्रकूट अपने विकास के लिये कराह रहा है। मध्य प्रदेश ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये थोडा बहुत विकास करवाया भी है पर उत्तर प्रदेश ने तो यहां पर इस सरकार में ठेले भर का काम नही करवाया।
फिलहाल अब तो वक्त केंद्र सरकार का है कि वह शीतकालीन सत्र में तीन राज्यों के मसौदे को पाने के बाद क्या कदम उठाती है। नये प्रदेशों को प्रस्ताव की ओर ले जाकर सदन में बहस करवाती है या फिर कोई आपत्त्ति लगाकर वापस भेज देती है।
अब बात मुख्यमत्री के नये प्रस्ताव के गूढ अर्थों की । चार राज्य बनने पर चार मुख्यमंत्री बनेगे प्रदेश मे सत्ता पर बैठी बसपा का स्वप्न बसपा को राष्टीय पार्टी के रुप में स्थापित कर अपने दिये नारे यूपी हुई हमारी है अब दिल्ली की बारी है की ओर इशारा है। यह केवल इशारा नही बल्कि हरित प्रदेश का झुनझुना जहां चौधरी अजीत सिंह को पकडा कर उन्हें मुलायम और कांग्रेस से और दूर कर देना है वहीं पूर्वाचल के 28 जिलों में अपने ही सिपहसलाहकारों को गद़दी पर बैठाना है। अवध प्रांत की सत्ता का सुख स्वामी प्रसाद मौर्य को व बुंदेलखंड के लिये नसीमुद़दीन सिद्वीकी को मुख्य मंत्री बनाना है। वैसे अपने इस कार्यकाल में नसीम बांदा को राजधानी के लायक तैयार कर विकास की गंगा भी बहा चुके हैं। मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज के साथ ही सडक पानी बिजली व बीबीआईपी गेस्ट हाउसों का निर्माण उसी कडी के रूप में बहुत पहले से देखा जा रहा है।
बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के काफी दिनों तक स्वयंभू अध्यक्ष फिल्म स्टार राजा बुंदेला को इस बात का अब बडा संतोष है कि चलो चुनाव के चक्कर में ही पर कम से कम केंद्र के सरकार में माया ने बाल तो डाली।
लेकिन एक बडा सवाल प्रदेश के बटवारे पर मप्र के उस हिस्से को लेकर भी है जहां पर बडी संख्या में बुंदेली लोग रहते हैं। बुंदेलखंड एकीक्रत पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष संजय पांडेय भी इस बात को लेकर प्रसन्न है कि कई बार के आंदोलनों का रिजल्ट अब दिखाई दे रहा है। जल्द ही अब उन्हें अपना नया प्रदेश दिखाई देगा।
चित्रकूट हो फ्री जोन
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं से कराहता चित्रकूट प्रदेश के बटवारे के प्रस्ताव के बाद एक बार फिर सामायिक मुदुदे की ओर बढ गया है। नाना जी देशमुख के चित्रकूट आने के बाद उन्होंने जब यह दुर्दशा देखी तो उन्होंने दोनो प्रदेशों के राज्यपालों को एक टेबिल पर बैठाया बात हुई तय हुआ कि कम से कम पन्द्रह किलोमीटर का एरिया न यूपी का होगा न एमपी का यह तो केवल चित्रकूट होगा पर यूपी की सरकार ने इस बात का पालन किया लेकिन मप्र सरकार ने अपने ही गर्वपर की बात नही मानी।
दीन दयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा: भरत पाठक कहते हैं कि प्रदेश का बटवारा अच्छी बात है। मप्र को साथ देना चाहिये जिससे सभी बुंदेली एक हो सकें। रही चित्रकूट की बात तो कम से कम चित्रकूट को इस बंधन से मुक्त कर कम से कम दस से पन्द्रह किलोमीटर के क्षेत्रफल को फ्रीजोन या केंद्र के आधीन ही रहना चाहिये। क्यों कि अतुल्य भारत की छवि को जितने सुन्दर रुप में चित्रकूट में बढावा दिया जा रहा है उतना किसी दूसरे धर्मस्थल पर नही।
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